27.6.11

मेरे अपने


मेरे अपने होते है जो रूबरू मुझसे

खामोश ही रहते हैं वो

बोलती हैं बस वजहें और वक़्त

बयां होती है मेरी खूबिय और शोहरत

जुबान पे उनके अल्फाज़ होते है

पर दिल में सन्नाटे

मेरे कान सुनते है

पर दिल खली खली सा

रूह बेकरार है सुनने को इन्हें

ये जो हैं मेरे अपने

गैरों से कहते हैं मेरी बात खुल कर

मुझसे निभाते हैं बस अदब बरसों से

मेरे दाग जो देखे है तुमने

गैरों में कहकर हकीर न करो

मुझे इल्म होता जो

मैं मिटा देता इन्हें

एहसान होगा जो

मुझे भी दिखा दो ये दाग

मुझसे कितना पयार करते हो ये ज़ाहिर है

मुझसे ज़यादह तुम्हे मेरी खबर है

मेरे रंज -ओ -ग़म में बेकरार राहतो हो तुम

हर से मेरी नालायकी की मलामत करते हो

मेरी इल्तेज़ा है के तुम मुझसे मुखातिब हो जाओ

मेरी kaali तस्वीर पहले मुझे दिखा जाओ

2 comments:

  1. नबील भाई, अच्छी नज्म बन पड़ी है, बस रोमन में होने की वजह से प्रवाह थोड़ी थमती नजर आती है। मेहरबानी होगी यदि आप इसे देवनागरी में उकेरे। जहां तक पढ़ने के बाद का अनुभव शेयर करने की बात है तो "मेरे दाग जो देखे हैं तुमने...." पर आकर मैं ठहर जाता हूं और सोचता हूं कि क्या मैं यह कह पाउंगा कभी..अपने दाग के बारे में।

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  2. This is very nice, thank you for posting! Have a great day! Nice blog design by the way..

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