5.3.10

Talash


खुशबू से महकता हैं मेरा चमन
हर गुल व् गुलशन मेरा है
आज कहता हैं मेरा मन!

फिर क्यों बुझा, बुझा सा हूँ मैं
मैंने आज पाया है वही गुलाब
जिसकी खुशबू को वर्षों तरसा हूँ मैं


मैं क्यों फिसलता जा रहा हूँ फिर
एक नई तस्वर में
जिसे माना था ज़िन्दगी आज मेरे पास है
फिर मुझे न जाने किसकी तलाश है!

मैं थम सा गया हूँ, रुक सा गया हूँ
मैं खुद को खुद में तलाशता हूँ
बड़ी बेचैनी है, खुशी है या ग़म
इसकी तस्दीक चाहता हूँ !

मैं मुसाफिर बेगाना अपने ही सहर का
न जाने किसको ढूँढता हूँ
जब पूरा सहर हैं अपनों का !


3 comments:

  1. bhut acche nabeel bhai .................

    hindi kha se sikh rahe ho
    keep it up

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  2. बड़ी ही खुबसूरत बातें एक बेहद उम्दा अंदाज़ में बयां की गईं है . हम तो आपके के इस हुनर से बिलकुल ही अंजान थे
    शायर नबील बिहारी अब तक थे कहाँ

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  3. बड़ी ही खुबसूरत बातें एक बेहद उम्दा अंदाज़ में बयां की गईं है . हम तो आपके के इस हुनर से बिलकुल ही अंजान थे
    शायर नबील बिहारी अब तक थे कहाँ

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