खुशबू से महकता हैं मेरा चमन
हर गुल व् गुलशन मेरा है
आज कहता हैं मेरा मन!
फिर क्यों बुझा, बुझा सा हूँ मैं
मैंने आज पाया है वही गुलाब
जिसकी खुशबू को वर्षों तरसा हूँ मैं
मैं क्यों फिसलता जा रहा हूँ फिर
एक नई तस्वर में
जिसे माना था ज़िन्दगी आज मेरे पास है
फिर मुझे न जाने किसकी तलाश है!
मैं थम सा गया हूँ, रुक सा गया हूँ
मैं खुद को खुद में तलाशता हूँ
बड़ी बेचैनी है, खुशी है या ग़म
इसकी तस्दीक चाहता हूँ !
मैं मुसाफिर बेगाना अपने ही सहर का
न जाने किसको ढूँढता हूँ
जब पूरा सहर हैं अपनों का !
bhut acche nabeel bhai .................
ReplyDeletehindi kha se sikh rahe ho
keep it up
बड़ी ही खुबसूरत बातें एक बेहद उम्दा अंदाज़ में बयां की गईं है . हम तो आपके के इस हुनर से बिलकुल ही अंजान थे
ReplyDeleteशायर नबील बिहारी अब तक थे कहाँ
बड़ी ही खुबसूरत बातें एक बेहद उम्दा अंदाज़ में बयां की गईं है . हम तो आपके के इस हुनर से बिलकुल ही अंजान थे
ReplyDeleteशायर नबील बिहारी अब तक थे कहाँ