19.6.09
भारत
आज एक कदम नहीं चल सकता
संसार पीछे छोड़ने की थी जिज्ञासा
आज अपाहिज बन बैठा
कैसी है ये दुराशा!
शिखर के छाती पर लिखा था अपना नाम कभी
आज उसको चूम नहीं सकता
अब तो दर्शन भी दुर्लव् है लगता
अपना सर उठाऊँ कैसे
मुझमे अब वो बात नहीं दीखता
मैं अपने हृदय की ज्वाला को
नैन रस से शांत करता
हर मोड़, हर गली में साजिश
सबकी निगाहें मुझपे जैसे मैं बकरा, वो कसाईं
अरे मुझे सींचो मुझे सजाओ
मैं विशव का सबसे सुंदर, सबसे भिन्न फूलों वाला बगिया
जागो जिसे तुमने चुना हैं मेरा माली
वह स्वं हिं स्वार्थ का पुजारी
सब अवसरवादियों ने हैं पैठ बढाली
कभी गुजरात, कभी मुंबई जैसे कंडों से
अपना मुकुट सजा लि
कितने कलियों की लालसा थी खिलने
की परन्तु इसके रक्षक ने डाल ही कट डाली
बेचारी कलि तड़प तड़प के मुरझा गई
हाय! ये कैसा था माली !
आश्चर्य! इन्होने भगवन की भी शक्ति छिर्ण कर डाला
अगर राम अयोध्या तक ही तो फिर विश्व में कैसे फैला उजाला
यह कैसी श्रद्घा कैसा प्रेम है निराला
पालित ने ही पलक को निम्न बना डाला
यही एक नहीं, ऐसे अनेक बादलों ने दीपक रोक
फैला रखा है अँधियारा
अब तो मेरा मुकुट भी मुझे नहीं भाता
इसके रतन ने मुझे ही घायल कर डाला
मैं असमंजस में, क्या मैं ही हूँ भारत
जिसने कबीर, भरत जैसे लाल को था पाला
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बहुत खूब नबील साहब, राम दरअसल मंदिर में बंद रखने के लिए हैं ही नही। लोग कहते हैं मैं नास्तिक हूं. लेकिन मेरा मानना है कि राम महज संज्ञा ही नही विशेषण भी हैं...राम महज एक मंदिर के मौहताज नही। राम बुढिया का लाठी है, राम खाली कनस्तर का आटा है, राम बच्चों की गेंद है, राम गरम सांझ में चलने वाला मंद मंद समीर है..वह मंदिर में जो बंद है वह तो मूरत है उसकी बस्स।।
ReplyDeleteबहुत खूब नबील साहब, राम दरअसल मंदिर में बंद रखने के लिए हैं ही नही। लोग कहते हैं मैं नास्तिक हूं. लेकिन मेरा मानना है कि राम महज संज्ञा ही नही विशेषण भी हैं...राम महज एक मंदिर के मौहताज नही। राम बुढिया का लाठी है, राम खाली कनस्तर का आटा है, राम बच्चों की गेंद है, राम गरम सांझ में चलने वाला मंद मंद समीर है..वह मंदिर में जो बंद है वह तो मूरत है उसकी बस्स।।
ReplyDeleteManjit-ji--wish the whole world agrees with your depiction of Ram, then we will have only peace! Your thoughts and expressions area unparalleled. thanks
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