24.8.10


मैं लिख दूँगा फ़साना

पर जिंदगी कहने के लिए कुछ दे तो

यहाँ तो सब खामोश है

इस ठहरे पानी में एक कंकर ही सही


सांसे लेता तो हूँ मैं
शक नहीं अभी जिंदा हूँ
चलो इंतज़ार कर लूँ
इस घनघोर बदल के फटने का
शायद आनेवाले तूफान में
दर्द ही सही कुछ एहसास तो हो

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