Nabeel's open diary
read it aloud!
12.3.11
चलो इस क़दर जमीन मुस्कुराए ,
कदम उठाओ यूँ के रासते के पत्थर थर्राए
छोर दो ख्यालों की दुनिया
वापिस लौट आ यहाँ , अभी में ,
अगर
चाहो
जो
जीना
मयार
में
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