16.2.11

नबील की पिटारी से

एक नज़र तेरी मुझ पे हो
खुदा की कसम कब्र से जी उठूँगा
आज भी इंतज़ार का सिलसिला बरक़रार है
याद है तेरी इंतज़ार में भीगती रही थी नात्वा मेरी
लेकिन ऐसा लम्बा हुआ ये सिलसिला के
रेतीली हो गयी ये आँखें
आज कुछ भी नहीं दीखता है सेवा
तेरी तस्वीर जो हमने बनाई थी
अपने तसौवर में
लगता है के अब मुनके नकीर भी
अगर मुझसे मेरे रब को पूछेगा
तो तेरा ही नाम आएगा

इल्तेजा है तुझसे के तेरे आस्क न बहे
तो कोई मलाल नहीं
पर एक बार अपने पैरों की आहट ही
सुना जा, होगी मेरे रूह परवाज में थोड़ी आसानी ।





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