Nabeel's open diary
read it aloud!
20.2.11
ज़िन्दगी में रौशनी की चाहत में हम भी चिरागां करने गए
न जाने कैसी थी किस्मत जीने की तमन्ना भी खाक कर गए
बरे ज़हमत
से
बनाया
था
आरजुओं
का
ये
नशेमन
बस
अब
सहजने
को
कुछ
खाक
ही
रह
गए
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