20.2.11

ज़िन्दगी में रौशनी की चाहत में हम भी चिरागां करने गए
न जाने कैसी थी किस्मत जीने की तमन्ना भी खाक कर गए
बरे ज़हमत से बनाया था आरजुओं का ये नशेमन बस अब सहजने को कुछ खाक ही रह गए


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